अकबर की शासन प्रणाली और धार्मिक निति केसी थी ?

सैन्य व्यवस्था


 राजकीय सेना का बड़ा भाग जागीरदारों के पास होता था, इसकी भागीदारों के ऊपर था जिससे साम्राज्य के ऊपर भार कम आता था | कभी-कभी जागीरदार शक्ति अर्जित कर के विद्रोह कर देते थे | इसलिए अकबर ने जागीरदारी प्रथा समाप्त कर दी |


 राजकीय सेना का बड़ा भाग जागीरदारों के पास होता था, इसकी भागीदारों के ऊपर था जिससे साम्राज्य के ऊपर भार कम आता था | कभी-कभी जागीरदार शक्ति अर्जित कर के विद्रोह कर देते थे | इसलिए अकबर ने जागीरदारी प्रथा समाप्त कर दी |

अकबर का धार्मिक निति –

इनको प्रथम ऐसा सम्राट माना जाता है | जिसने धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखाई पड़ता है | उनके इस विकास को तीन भागों में देखा जा सकता है और विभाजित किया जा सकता है-

Table of Contents

प्रथम काल 1556 से 1575 ईसवी-

 इस सालों के बीच अकबर मुसलमानों का कट्टर अनुयाई था | उन्होंने मुसलमानों की उन्नति के लिए कई मस्जिदों का निर्माण करवाया | वही दिन में 5 बार नमाज पढ़ते थे | रोजा रखते थे और मुसलमान मौलवियों का आदर करना उनके मुख्य विचार थे |

दित्य काल 1575 से 1582 इसवी-



अकबर का द्वितीय काल धार्मिक दृष्टि से क्रांतिकारी था| 1575 ईसवी में इन्होंने फतेहपुर सीकरी में इबादत खाने की स्थापना की उसने 1578 ईस्वी में इबादत खाने को धर्म संसद में बदल दिया उन्होंने शुक्रवार को मांस खाना भी छोड़ दिया |

अगस्त सितंबर 1579 ईसवी में  महजर की घोषणा कर अकबर धार्मिक मामलों में सबसे ऊंचे निर्णय लेने वाले बन गए| महजरनामा का प्रारूप शेख मुबारक द्वारा तैयार किया गया था | उलेमाओं ने अकबर को ‘इमामै-आदित’ घोषित कर विवादास्पद कानूनी मामले पर आवश्यकतानुसार निर्णय का अधिकार दिया |

तृतीय काल 1583 से 1605 ईस्वी-

 इस काल में अकबर की प्रतिष्ठान इस्लाम धर्म में कम हो गई थी | इस काल के अंतर्गत अकबर पूर्ण रूप से दिन-ए-इलाही में अनुरूप हो गए थे | प्रतीक रविवार की शाम को इबादत खाने मैं अलग-अलग धर्मों के लोग एकत्र होकर धार्मिक मामलों पर वाद विवाद किया करते थे |

इबादतखाने के शुरुआती दिनों में शेख, पीर, उलेमा ही यहां धार्मिक वार्ता के लिए एकत्रित होते थे | किंतु कलानंतर में अलग-अलग धर्मों के लोग जैसे ईसाई, हिंदू ,जैन, बौद्ध, फारसी, सूफी आदि को इबादतखाने में अपने-अपने धर्म के विषय को रखने के लिए आमंत्रित किया गया जाता था |

इबादत खाने में होने वाली धार्मिक वाद-विवाद मैं अबुल फजल की महत्वपूर्ण भूमिका होती थ

अकबर की हिंदू नीति-

 अकबर भले ही मुसलमान थे | लेकिन उन्होंने कभी भी हिंदू मुस्लिम राजाओं के बीच भेद-भाव नहीं किया उनके लिए दोनों प्रजा समान होती थी | अकबर भारत के पूर्व मुस्लिम शासकों से बिल्कुल भिन्न थे | भारत के पूर्व मुस्लिम शासक हिंदू जनता के ऊपर घोर अत्याचार करते थे | उनके धर्म स्थान को नष्ट कर देते थे ,उन्हें अपना शत्रु समझते थे |

इन शासकों में बलबन, अलाउद्दीन, फिरोजशाह तुगलक थे इन सभी कारणों से इंका साम्राज्य अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया था अन्यथा अकबर यह  गलती नहीं करना चाहते थे | बल्कि अकबर दिल से उदार थे |

उनके मन में हिंदू और मुस्लिमों के प्रति किसी प्रकार की भेदभाव कभी उत्पन्न नहीं होती थी | उनकी कथा अनुसार उनके विचार ,व्यवहार से ऐसा लगता है | जैसे कि हिंदू और मुस्लिम उनकी दो आंखें जैसी थी | अकबर ने अपनी हिंदू प्रजा को संतुष्ट और खुश रखने के लिए कोई नीति अपनाई थी जो निम्नलिखित हैं-

(1)जजिया की समाप्ति

अकबर ने हिंदू पर लगे जजिया कर के रूप में लगे धार्मिक कर को समाप्त कर दिया | जिससे राज्यों को प्रत्येक वर्ष एक करोड़ की आय होती थी, पर उन्होंने इसकी चिंता किए बिना इस घर को हटा दिया |

(2) धर्म परिवर्तन पर रोक

अकबर एक कट्टर मुसलमान थे | इन्होंने मुसलमानों के लिए हितकारी कार्य किए, कई मस्जिद बनवाएं किंतु इन्होंने किसी भी हिंदू प्रजा को उनके धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर नहीं किया ,बल्कि उनके राज्य में ऐसे कार्य पर बिल्कुल प्रतिबंध लगे हुए थे |



(3) हिंदुओं को धार्मिक स्वतंत्रता –

अकबर के साम्राज्य में मुसलमानों की उत्सव की तरह हिंदुओं के उत्सव को भी महत्वपूर्ण समझा जाता था |हिंदुओं को पूजा-पाठ करने तीर्थ स्थान जाने की पूर्ण स्वतंत्रता थी |

(4)हिंदू भावनाओं का सम्मान-



अकबर हिंदुओं की भावना का सम्मान करते थे | उन्होंने हिंदुओं के लिए स्वयं मांस ,मदिरा तथा लहसुन-प्याज का सेवन त्याग दिए थे | उनके महल में अनेक हिंदू त्योहारों का उत्सव आयोजित किए जाते थे, अकबर सभी हिंदू धार्मिक उत्सव में शामिल होते थे |

इनके फतेहपुर सिगड़ी के महल में हवन ,यज्ञ तथा सूर्य ,अग्नि आदि हिंदू देवताओं की पूजा होती थी और अकबर माथे पर हिंदू की भांति तिलक भी लगाया करते थे |

(6) वैवाहिक संबंध-

अकबर ने हिंदुत्व की भावना को दिखाते हुए हिंदू स्त्रियों के साथ कई वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे | उनकी कई रानियां हिंदू थी | जिनको अकबर अपनी बेगमओं की तरह सम्मान देते थे |

उनके लिए अलग से पूजा- पाठ करने की पूर्ण सुविधा थी | अकबर के महल में मंदिर बने थे तथा अकबर अपनी रानियों के साथ उत्सव और त्योहारों में शामिल होते थे | जैसे होली दशहरा दीपावली आदि में खुशी से भाग लेते थे|

(6)उच्च पदों को प्रदान करना_

अकबर ने हिंदुओं को अपने दरबार में महत्वपूर्ण स्थान दिए थे | जैसे -राजा बीरबल, मानसीह, भगवानदास ,टोडरमल, तानसेन | जैसे हिंदू उनके नवरत्नों में से थे | जो उनके दरबारों में कार्य करते थे |


(7) हिंदू विद्वानों को संरक्षण

अकबर ने पूर्ण रूप से हिंदू को समर्थन समर्थन दिया उनके दरबार में अनेक हिंदू विद्वानों साहित्यकारों और कवियों को संरक्षण दिया गया था | अकबर के कहने पर, जिन्होंने उनके दरबार में रहकर अनेक संस्कृति ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद किया था |

 हिन्दुओ के प्रति प्रेम और अच्छे व्यवहार के परिणाम –

अकबर की हिंदू नीति उनकी हिंदू के प्रति उदार दिल हिंदुओं को उनके प्रति प्रशंसक और सहयोगी बना दिया इसका लाभ अकबर को मिला हिंदुओं ने हर प्रकार से अकबर को सहयोग दिया और राज्य में शांति और सुव्यवस्था स्थापित हुई |

साम्राज्य की भेदभाव समाप्त हो गई | हिंदू मुस्लिम एकता उत्पन्न हुई | हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे के काफी निकट आ गए | राजा अकबर को हिंदू के प्रति प्रेम देखकर सभी प्रजा हिंदू और मुस्लिम मिल गए |

दीन -ए- इलाही

अकबर एक महान कुशल और उधार दिल वाला शासक थे | हिंदू मुस्लिम मैं बिना भेदभाव किए साम्राज्य को विशेष रुप से नियंत्रित रखते थे | उन्हें हिंदू मुस्लिम भेदभाव से नफरत थी |
  इन्हीं सभी भावनाओं से प्रेरित होकर अकबर ने सभी धर्मों की अच्छी बातों को मिलाकर दिन-ए-इलाही नामक एक धर्म चलाया दीन का अर्थ धर्म तथा इलाही का अर्थ – ‘अल्लाह या ईश्वर है’ अतः दिन-ए-इलाही का अर्थ ‘ईश्वर का धर्म है’ |

अकबर ने अपने इस नए धर्म के प्रचार के लिए फतेहपुर सीकरी में एक इबादत खाना निर्मित कराया और वहीं पर अकबर अपने धार्मिक उपदेश देता था और लोगों को दीन इलाही धर्म में प्रवेश कराता था |

शिक्षा लेने वाले के सिर पर पगड़ी रख कर उसे दीन ए इलाही धर्म का अनुयाई बनाया जाता था | इस धर्म के अंतर्गत अकबर ने मानव जीवन को पवित्र आदर्श आज्ञाकारी बनाने के लिए अच्छी-अच्छी बातों को सम्मिलित किया था | उसके प्रमुख उपदेश निम्नलिखित थे –

(1) मांस मदिरा इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए अतः मनुष्य को सादगी और पवित्र  जीवन बिताना चाहिए |

(2) मनुष्य को संपति ,धन ,प्रतिष्ठा ,जीवन इत्यादि का  लोभ नहीं करना चाहिए

(3) मनुष्य को दूसरे मनुष्यों के साथ प्रेम ,विनम्रता ,समानता का भाव रखना चाहिए | .

(4) अकबर का मानना था हमें अपना जीवन दूसरों की सेवा तथा भलाई में बिता देना चाहिए |

(5) ईश्वर एक है और अकबर उसका सर्वोच्च उपासक और पैगंबर है |अकबर का यह दिन-ए इलाही धर्म उच्च आदर्श एवं नैतिक से प्रेरित था सम्राट अपने धर्म के प्रचार के लिए कभी बल प्रयोग पद प्रतिष्ठा के प्रलोभन आदि का आसरा यहां लिया |

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