मगध में नंद वंश के पश्चात मौर्य वंश का साम्राज्य स्थापित हुआ | इस वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट माना जाता है| मौर्य कुल का होने के कारण चंद्रगुप्त, नन्द राज्य की सेना में सेवास्थ था | नंद राजा के दुर्व्यवहार के कारण चंद्रगुप्त ने विद्रोह कर दिया फलस्वरूप उसके लिए मृत्यु दंड का आदेश दिया गया किंतु वह भाग निकला और उसने नंद वंश के विनाश की प्रतिज्ञा की |
इसी बीच उसकी मुलाकात चाणक्य नामक महान विद्वान और कूटनीतिज्ञ से हुई | चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय का आचार्य था | किसी धार्मिक अवसर पर नन्द के द्वारा अपमानित किये जाने के कारण चाणक्य ने भी नन्द की विनाश की प्रतिज्ञा की थी |
चन्द्रगुप्त के बाल अवस्था के समय ही सिकंदर ने भारत पर ३२६ ईस्वी पूर्व आकर्मण कर दिया | सिकंदर ने भारत के खावरपास सिमा को पार कर यहाँ के राजा पूर्व को परास्त कर अपने अधीन कर लिया | इसके आगे नन्द का राज्य मगध था पर भारत के महान विजेता सिकंदर, मगध पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर पाये और भारत की गंगा के मैदानो से वापस चले गये |
नन्द वंश का इतिहास –
नन्द नौ भाई थे किन्तु इसमें सबसे बुद्धिमान और प्रशिद्ध महापदम नन्द थे | इनको प्रथम राजा बनाया गया था | नन्द वंश के अंतिम राजा घनान्द बने जो निरंकुश शासक थे| जिसने प्रतिदिन उपयोग होने वाले वस्तुओ पर कर लगा के रखा था, जिससे प्रजा में अशंतोष और क्रोध भर चूका था | एक दिन चाणक्य जो तक्षशिला के शिक्षक थे, भारत पर हो रही विदेशी आक्रमणों के मामलो को लेकर घनान्द से मिलने मगध पहुंचे ,घनान्द प्रस्ताव को सुने बिना ही इंकार कर दिए| सर्फ इतना ही नहीं चाणक्य का घोर अपमान भी किया, उसी दिन चाणक्य अपनी शिखा खोल कर अपनी इस अपमान का बदला लेने की ठान लेते है |
चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रारम्भिक जीवन
चन्द्रगुप्त का जन्म 345 ईसा पूर्व मोरिया जाती में बिहार राज्य के पाटलिपुत्र जिला में हुआ था | इनके पिता नंदा जो मोरिया जात के मुखिया थे और माता मुरा जो क्षुद्र जाती की दासी थी | सीमांत संघर्ष में पिता की मिर्त्यु के बाद इनकी माता पाटलिपुत्र चली गयी और यही चन्द्रगुप्त को जन्म दी |
चाणक्य ने नन्द वंस के वीनास की प्रतिज्ञा ली थी| चन्द्रगुप्त अपने दोस्तों के साथ जब पाटलिपुत्र में खेल रहे थे तब चाणक्य की नज़र उन पर पड़ी| चाणक्य ने एक ही नज़र में चन्द्रगुप्त की योग्यता को समझ गए और अपना शिष्य बना लिया| चाणक्य, चन्द्रगुप्त की योग्यताओ को देखकर समझ गए थे की भविष्य में नन्द वंस को चंद्रगुप्त ही समाप्त करेंगे | इसके बाद चाणक्य चन्द्र्गुप्त को नन्द वंश की विनाश के लिए युद्ध की शिक्षा देकर तैयार करते है |
चन्द्रगुप्त मौर्य कि वाइफ नंदिनी और उनका विवाहिक जीवन
चन्द्रगुप्त मौर्य ने दुर्धरा से विवाह की थी |ऐसा कहा जाता है की चाणक्य , चन्द्रगुप्त के भोजन में थोरी मात्रा में जहर मिला दिया करते थे ताकि भविषय में कभी उनपर जहर का जायदा असर ना परे, लेकिन एक दिन चन्द्रगुप्त का भोजन उनकी गर्भवती पत्नी दुर्धरा ने खा लिया और एक पुत्र को जन्म देने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी|
चन्द्रगुप्त मौर्या ने दूसरी शादी सेल्यूकस की बेटी हेलेना से की थी|ऐसा कहा जाता है की हेलेना चन्द्रगुप्त की वीरता को देखकर पसंद कर ली थी और उनसे शादी करना चाहती थी ,आगे चलकर दोनों की शदी हुई|
चन्द्रगुप्त मौर्य का शाशनकाल
चंद्रगुप्त और चाणक्य मिलकर चोरी छुपे सेना का संगठन करने लगे और उन्हें पाटलिपुत्र के जंगली पहाड़ियों में छुपा कर रखते थे इसके पश्चात प्रथम चंद्रगुप्त नंद राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्जा कर लिया और घनान्द से युद्ध कर पराजित कर दिया और 321 ईस्वी पूर्व 20 साल की उम्र में चन्द्रगुप्त मौर्य साम्राज्य को जित कर 322 ईस्वी पूर्व मौर्य साम्राज्य का राजा बन गया |
चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त एक सेना संगठित की और मगध पर आक्रमण कर दिया किंतु चन्द्रगुप्त को पराजित होकर भागना पड़ | चन्द्रगुप्त ने भारत आक्रमण में व्यस्त सिकंदर से भेंट की | चंद्रगुप्त के स्वतंत्र विचारों पर क्रोधित सिकंदर ने उसे मार डालने की का आदेश दिया किंतु चंद्रगुप्त वहा से बच निकला | सिकंदर के लौट जाने के बाद उसने पंजाब के कुछ राज्यों को जित लिया,लगभग 322 ईस्वी पूर्व में चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा |
चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यविस्तार
चन्द्रगुप्त ने मालवा ,गुजरात ,कठियावाड़ और सिंध आदि क्षत्रो को जित कर मगध में मिला लिया | उन दिनों सिकंदर का सेनापति सेल्युकस सीरिया का शासक था | और अपने राज्य का विस्तार भारत की ओर करना चाहता था | चन्द्रगुप्त ने युद्ध में सेल्युकस को पराजित कर दिया| सेल्युकस ने विवश होकर चन्द्रगुप्त से संधि कर ली | उसने अपने पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया और वर्तमान अफगानिस्तान तथा बलुचिस्थान का कुछ भाग भी उपहार में दे दिया |
सेल्युकस ने मेगस्थनीज नामक राजदूत को चन्द्रगुप्त के दरवार में भेजा | चन्द्रगुप्त ने उपहार में मेगस्थनीज को 500 हाथी दिये | चन्द्रगुप्त का साम्राज्य अफगानिस्तान से बंगाल और दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था | उसका शासनकाल 322 ईस्वी पूर्व से 298 ईस्वी पूर्व तक माना जाता है |
चंद्रगुप्त मौर्य का शासन प्रबंध
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था पर मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका तथा चाणक्य के अर्थशास्त्र द्वारा विस्तृत प्रकाश डाला गया है |चंद्रगुप्त न केवल एक महान विजेता था वरन एक योग्य शासक भी था|
केंद्रीय शासन
सम्राट शासन का केंद्र बिंदु था| न्याय, सेना तथा प्रशासन तीनों अंगों का वह अध्यक्ष था| वह विदेश नीति, प्रशासनिक नियुक्ति, आय – व्यय निरीक्षण, प्रांतीय शासकों के नियंत्रण का सर्वोच्च अधिकारी था| सम्राट की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी जिसके सदस्य शासन के 18 विभागों के प्रतिनिधि होते थे| सम्राट निरंकुश होते हुए भी मंत्रिपरिषद तथा विद्वानों की सलाह से काम करता था| सम्राट का गुप्तचर विभाग उच्च कोटि का था |
प्रांतीय शासन
समस्त साम्राज्य उत्तर पथ, अवनित पथ, दक्षिण पथ तथा प्रांतीय पथ चार प्रांतों में विभक्त था| प्रांतों के शाशक राजकुमार होते थे वे राजपरिवार के सदस्य होते थे प्रांतों में केंद्रीय शासन जैसी शासन व्यवस्था थी प्रांत जनपदों में तथा जनपद बनो या विश्व में विभक्त होते थे| एक एक गट्ठा में कई गांव होते थे| राजधानी पाटलिपुत्र का प्रबंध 6 समितियां करती थी| प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे| वे समितियां थी जनगणना समिति, कर समिति, विदेशी यात्री समिति, वाणिज्य व्यापार समिति, शिल्प कला समिति और वस्तु निरीक्षण समिति |
सैन्य संगठन
सम्राट की सेना में पैदल, घुड़सवार, हाथी और रथ सम्मिलित थे |इनके अतिरिक्त जल सेना तथा जहाजी घोड़ा था|सेना का प्रबंध 6 समितियां करती थी | सेना काफी विशाल सुगठित और रन कुशल थी |
कर व्यवस्था
राजकीय आय का मुख्य स्त्रोत भूमि कर था | राज्य की आय के अन्य स्त्रोत उद्योग ,व्यापार आदि कर थे | टकसाल ,खानों, जंगलो ,गोचर ,भूमि शास्त्र निर्माण आदि से भी अच्छी आय होती थी |
लोकहित कार्य
चंद्रगुप्त ने लोकहित के अनेक कार्यों की व्यवस्था की थी | यातायात, आवागमन, सिंचाई,का उत्तम प्रबंध किया गया था | सड़कों का निर्माण कर दोनों और छायादार वृक्ष लगाए गए | विभिन्न समितिया उनकी सुख -सुविधा तथा सम्पनता के लिए प्रयत्नशील रहती थी | यदा कदा दीन -दुखियों को वस्त्र ,अन्न की सहायता दी जाती थी |चंद्रगुप्त ने सिंचाई के लिए सौराष्ट्र में सुदर्शन नामक झील बनवाई थी | अपराधों की रोकथाम के लिए राज्य में विशेष कर्मचारी थे |
मौर्यकालीन भारत की स्थिति
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य , बिंदुसार तथा अशोक जैसे महान सम्राटों के शासनकाल में भारत में राजनीतिक एकता स्थापित हुई तथा देश को एक सुद्रढ प्रशासन की व्यवस्था प्राप्त हुई |
यही कारण है कि मौर्य शासनकाल में भारत ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा कला के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की थी |
सामाजिक स्थिति
मौर्य काल में समाज 4 प्रमुख वर्गों में विभाजित था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र | इनके पारंपरिक संबंध अच्छे थे लोगों में वर्ण व्यवस्था की तीव्र भावना थी और उनके सामाजिक क्रियाकलाप ,खान -पान, विवाह आदि अपने ही वर्ण तक सीमित थे | तथापि यदा-कदा दो भिन्न वर्णों में भी विवाह होने लगे थे | जातियों – उप जातियों की संख्या में वृद्धि जारी थी तथापि उनमे में सदभावना की कमी नहीं थी | समाज में दास प्रथा थी |
आर्थिक स्थिति
लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था | धान,कोदो ,तिल, मूंग ,उड़द,मसूर ,जो , चना, मटर, सरसों, ईख, कपास आदि की खेती के अतिरिक्त कटहल, नींबू, आंवला, जामुन ,अंगूर आदि का भी उत्पादन किया जाता था | सूती, रेशमी ,एवं ऊनि वस्त्रों का उधोग काफी उन्नत थी विभिन्न धातुओं के आभूषणों बनाए जाते थे | लकड़ी और चमड़े के उद्योग भी प्रचलित थे | रथ, जलयान, अस्त्र -शास्त्र आदि के उद्योग काफी विकसित थे | व्यापार वाणिज्य अच्छी थी |
कला की स्थिति
इस काल में स्थापत्य वस्तु मूर्ति तथा नगर निर्माण कला उन्नति थी | पाटलिपुत्र नगर तथा राज-भवन की सुंदरता की प्रशंसा भारत आने वाली चीनी यात्री फाह्यान ने भी की है | सम्राट अशोक के समय में पाषाण काल की अच्छी उन्नति हुई | पर्वतों को काटकर गुफाओं ,बिहारो , स्तंमभो , स्तूपों आदि का निर्माण किया गया | सभी स्थम्भो में सारनाथ का स्तंमभ अत्यधिक सुंदर एवं सजीव है| इसके शीर्ष भाग पर 4 सिंह ,अश्व ,हाथी और बैल के बिच चारो और चक्र बना है |
साहित्य की स्थिति
मौर्य काल में कई लौकिक ग्रंथो की रचना की गयी इनमे कौटिल्य का ‘’अर्थशास्त्र’’ मेगास्थनीज की ‘’ इंडिका’’ बौद्ध ग्रंथ का ‘’त्रिपिटक’’ मौर्य युग के प्रसिद्ध ग्रंथ है | इनकी भाषा मुख्यतः प्राकृत है |
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु केवल 42 वर्ष की आयु में हो गयी|चन्द्रगुप्त मौर्य के शाशनकाल के अंतिम दिनों में बहुत भीषण आकाल पर गयी थी |वे जैन धर्म से काफी प्रभाबित थे और उन्होंने जैन धरम को ही अपना लिया था|जब उन्होंने जैन धर्म को अपना लिया उसके बाद वो जैन मुनि भद्रबाहु के साथ श्रवण बेलगोला आ गए जो आज वर्तमान में एक धर्मस्थल है, यहाँ आकर उन्होंने भद्रबाहु के साथ कठोर तपस्या की| जिस स्थान पर वो तपश्या किया वह स्थान चंद्रगिरी के नाम से प्रशिद है|केवल 42 साल की उम्र में उन्होने तपश्या करते हुए संलेखना वर्त द्वारा अपना प्राण दान कर दिया|संलेखना वर्त करते हुए उन्होंने अन्न और जल त्याग दिए और इस प्रकार से उनकी मृत्यु हुई|
मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण
अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक सुचारू रूप से शासन किया | 332 ईसवी पूर्व में अशोक की मृत्यु हो गई |अशोक के उत्तराधिकारी निर्बल तथा अयोग्य थे | फलत राज -शक्ति दिन- प्रतिदिन कमजोर पड़ती गई | मौर्य वंश के अंतिम सम्राट वह्द्र्थ को उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 184 ईसवी पूर्व में मार डाला और शासक बनकर उसने शुंग वंश के शासन की स्थापना की |
मौर्य साम्राज्य का पतन
सम्राट अशोक के पश्चात कोई भी उत्तराधिकारी इतना शक्तिशाली और योग्य नहीं हुआ की साम्राज्य की सुदृढ़ता बनाए रखे | बाद में आर्थिक स्थिति का संकट भी केंद्रीय शासन को झेलना पड़ा | केंद्रीय दुर्बलता के कारण दूरस्थ प्रांत स्वतंत्र होने लगे | विदेशी आक्रमण भी आरम्भ हो गए | यवनों ने मगध राज्य के पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर अधिकार कर लिया कुछ इतिहासकार अशोक को अहिंसा और पतन का कारण मानते है जिसे स्वीकार नहीं किया गया |मगध वंश के अंतिम सम्राट वढ़द्र्थ का वध कर उसके ही मंत्री अथवा सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की शासन स्थापित किया |
इस पोस्ट के माध्यम से हमने चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के बारे में जाना, किस प्रकार चन्द्रगुप्त ने घनान्द को मार कर चाणक्य की सहायता से एक विशाल मौर्या वंस की स्थापना की| उम्मीद करती हु की यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा, अगर पसंद आया तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताये|