अकबर की शासन प्रणाली और धार्मिक निति केसी थी ?

अकबर एक कुशल प्रशासक और मुगल वंश का तीसरा शासक था |उसने प्रशासन के क्षेत्र में नई – नई सुधारो के द्वारा एक कुशल संगठित राज्य प्रबंध की बुनियाद स्थापित की |इन्होने अपने प्रशासनिक ढांचे को नवीन स्वरूप प्रदान किया |

अकबर जब केवल 13 वर्ष के थे |उनके पिता हुमायूं की मृत्यु हो गई | जिसके पश्चात अकबर को सिहासन पर बैठना पड़ा था और राज्यों के कार्यों को संभाला पड़ा था | उनकी उम्र बहुत कम होने के कारण बैरम खां को उनका संरक्षक बनाकर राज-काज का संचालन करने के लिए रखा गया था |

4 फरवरी 1556 को ईट के चबूतरे का सिहासन बनाकर बैरम खान ने अकबर का राज्याभिषेक किया था |उस समय का राजनीतिक स्थिति अकबर के अनुकूल नहीं था क्योंकि उनकी बाल अवस्था थी ,और उस समय एक तरफ सिकंदर सूरी पंजाब में उत्पात मचाकर अपना राज्य विस्तार करने के लिए तत्पर था |

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वहीं दूसरी और आदिल शाह का सेनापति हेमू अकबर से दिल्ली छीन लेने के लिए तत्पर था | उधर कश्मीर, उड़ीसा, मालवा ,गुजरात, गोंडवाना इन सभी राज्यों में अपनी स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील थे |

इनको अपने पिता द्वारा सौंपी गई साम्राज्य और राजगद्दी को संपूर्ण शक्तिशाली और साम्राज्य का विस्तार करना था |

केंद्रीय शासन


मुगल सम्राट सर्वशक्तिमान संप्रभुता संपन्न निरंकुश शासक था | सैनी तथा असैनिक सारी शक्तियां उसके हाथों में केंद्रित थी | वह हर विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था | उसके असीमित अधिकार थे | इसके बाद भी वह मंत्रियों के परामर्श तथा अधिकारियों के सहयोग से कार्य करता था | मंत्रियों का परामर्श मानना उसके लिए अनिवार्य नहीं था |  बी .ए. स्कीम के अनुसार ”सम्राट ने अपने मंत्रियों के पीछे चलने के स्थान पर उन्हें पीछे चलाता था |” अकबर निरंकुश होकर भी प्रजा का हितेषी था | महल के झरोखे पर बैठकर वह लोगों का दर्शन करता था | उनकी फरियाद भी सुनता था | गुप्त मंत्रना के लिए अलग कक्ष निर्धारित था | वह धर्मनिरपेक्ष का सम्राट था | बिना पश्चताप तथा भेदभाव के अनुदान देता था |

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केंद्रीय विभाग का मंत्री


1.वकील या प्रधानमंत्र


 वकील या प्रधानमंत्री का स्थान सम्राट के बाद होता था | प्रधानमंत्री सम्राट तथा प्रशासन के बीच कड़ी का काम करता था |


2.दीवान या वजीर 


यह राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी था | वह राज्य की आय और व्यय के लिए उत्तरदाई होता था |


3.मीर बख्शी 


 यह सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी था | गुप्तचर विभाग की भी देख-रेख करता था | मीर बख्शी सैनिकों की भर्ती कराता था तथा सैनिक सैनिक अधिकारियों के वेतन का वितरण भी करता था |


4.मुख्य सदर (धार्मिक सलाहकार)


 मुख्य सदर का कार्य सम्राट को धार्मिक मामले में सलाह देना था | धार्मिक कार्यों में दान दी गई भूमि की देख-रेख करता था | काजी-उल-करजात तथा सद- उस-सुदूर दोनों का एक ही पद था | न्याय प्रशासन का भार इसी पर होता था |


5.अमीर सामा


 वह शाही हरम का प्रमुख अधिकारी होता था | सम्राट के अंगरक्षकों की नियुक्ति करना, हरम में भोजन सामग्री की व्यवस्था करना और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति का भार इसी पर होता था |


6.अन्य अधिकारी 


(1) अमीर आतिश (तोपखाने का अधिकारी). (2) दरोगा-ए-डॉग (3) दरोगा-ए-टकसाल |


यह राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी था | वह राज्य की आय और व्यय के लिए उत्तरदाई होता था |

(2) प्रांतीय प्रशासन 

 अकबर का संपूर्ण साम्राज्य 15 सुब में विभाजित था -(1)बंगाल (2)बिहार (3)इलाहाबाद (4)अवध (5)आगरा (6)दिल्ली (7)मुल्तान (8)लाहौर (9)काबुल (10)अजमेर (11)मालवा (12)गुजरात तथा दक्षिण के तीन प्रदेश (13)अहमदनगर (14)खानदेश (15)बरार |
प्रांतीय अधिकारी 


सूबेदार – यह प्रांत का प्रमुख अधिकारी होता था | प्रांतीय सेना उसके अधिकारी क्षेत्र में रहती थी | सूबेदार न्याय का भी सर्वोच्च अधिकारी होता था | इसके अतिरिक्त दीवान, बख्शी ,सदर, काजी आदि अनेक अधिकारी होते थे ,जो प्रांतों में शांति और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करते थे |

(3) स्थानीय प्रशासन


 अकबर ने प्रांतों को सरकार या जिलों में विभाजित किया था, वहां फौजदार,अमलगुजार, खजानदार आदि अधिकारी होते थे | इनका कार्य जिलों या सरकार में न्याय, प्रशासन,  भू -राजस्व की वसूली और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना था |


परगना या तहसील 


अकबर ने सरकारों को परगनो में विभाजित किया था | परगनो में सीकदार, अमिल, तदार और कानूनगो आदि अधिकारी होते थे |


ग्राम प्रशासन


 एक परगने में कई गांव शामिल रहते थे,गांव प्रशासन की छोटी इकाई थी | गांव का पूर्ण दायित्व ग्राम पंचायत पर था | मुकदमे भी पंचायतें सुना करती थी | ग्राम सुधार के सारे कामों के लिए ग्राम पंचायतें उत्तरदाई होती थी | मुकदमा पटवारी,चौकीदार आदि गांव के मनोनीत कर्मचारी होते थे |


भू व्यवस्था


 अकबर ने सिरसा शेरशाह की भू-प्रणाली अपनाई, पर उसमें सुधार लाकर उसे नवीन स्वरूप प्रदान किया | इस व्यवस्था को टोडरमल प्रणाली भी कहते हैं |इस व्यवस्था के अंतर्गत अकबर ने राजा टोडरमल की सहायता से कृषि योग्य भूमि की नाप करवाई कृषि भूमि को चार वर्गों में विभाजित किया गया – (1) पोलज – यह सर्वाधिक उपजाऊ भूमि थी | (2) पड़ोती – यह कम उपजाऊ होती थी | (3) चाचर- इसे किसान खोदकर कृषि योग्य बना सकते थे | (4)बंजर -यह अनूपजाओ भूमि थी 
इस वर्गीकरण से राज्यों को उपजाऊ भूमि का सही ज्ञान प्राप्त हो गया तथा भूमि कर निर्धारण में सुविधा हुई | इस व्यवस्था से राज्य तथा किसानों दोनों का लाभ हुआ |


लगान 


राजा टोडरमल ने 10 वर्षों की औसत उपज के आधार पर किसानों पर भू-राजस्व निश्चित किया, जिसे 10 सालआना बंदोबस्त कहा जाता था | यदि बाढ़, अकाल में फसल नष्ट हो जाए तो लगान माफ कर दिया जाता था | कृषि उपज तथा फसलों के प्रकार के आधार पर लगान लगाया जाता था | लगान कृषकों से उनके उत्पादन का एक तिहाई निश्चित किया गया था | उपज को काटे जाने के पूर्व ही ग्राम प्रधान की सहायता से सर्व द्वारा साम्राज्य को कुल प्राप्त होने वाले भू-राजस्व का अनुमान लगा लिया जाता था |नील, गन्ना, कपास जैसी फसलों पर लगान नगद देने की प्रथा थी, शेष फसलों पर किसानों की छूट थी कि वह अपना  लगान नगद दे अथवा खदान के रूप में |


न्याय व्यवस्था


 अकबर ने न्याय व्यवस्था में भी सुधार लाने का प्रबंध किया | न्याय का दायित्व काजिओ पर था | कभी-कभी इस पद को मुख्य ‘सद्र’ के साथ मिला दिया जाता था | प्रजा से मिलने या भेंट करने के लिए समय सारणी निर्धारित होती थी, जिसमें शहंशाह व अधिकारियों से मिलना होता था | दिन की शुरुआत शहंशाह के झरोखे से दर्शन देने के साथ होता था | जहां से उनके दर्शन के अभिलाषी हजारों की संख्या में प्रजा दर्शन पाती थी | काजिओ के निर्णय के विरुद्ध अपील को मुख्य काजी सुनता था | अंतिम अपील सम्राट सुनता था | मृत्युदंड का अधिकार सम्राट को था, न्याय निष्पक्ष होता था | मुस्लिम, हिंदू न्याय व्यवस्था परंपरा अनुसार ही न्याय किया जाता था |

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